सभा

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हिन्दी प्रचारिणी सभा एक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक संस्था है जिसका उद्देश्य है हिन्दी भाषा तथा हिन्दू संस्कृति की रक्षा तथा प्रचार-प्रसार करना। इसका आदर्श वाक्य है भाषा गयी तो संस्कृति गयी”। यह सभा तिलक विद्यालयके नाम से १२ जून १९२६ में स्थापित हुई थी। २६ दिसम्बर १९३५ में यह सभा एक राष्ट्रीय नाम से (हिंदी प्रचारिणी सभा) पंजीकृत हुई। तब से यह सभा हिन्दी भाषा एवं साहित्य का प्रचार करती है। अब संसद में पारित वर्ष २००४ के एक्ट, अनुच्छेद ३६ के जरिये हिन्दी प्रचारिणी सभा का संचालन होता है। हिन्दी प्रचारिणी सभा का भवन लोंग माउंटेन में स्थित है।

हिन्दी प्रचारिणी सभा की अन्य चार शाखाएँ भी हैं। हिन्दी प्रचारिणी सभा शाखा न. (रिव्येर दे जांगी), हिन्दी प्रचारिणी सभा शाखा न. (वाक्वा), हिन्दी प्रचारिणी सभा शाखा न. (लालुसी रॉय, बेलर), हिन्दी प्रचारिणी सभा शाखा न. (प्लेन दे पापाय). ये ज़मीनें सभा के नाम हैं, पर उनपर बनी बैठकाओं का संचालन उन्हीं गाँवों के लोगों द्वारा होता है।  

 

सभा की स्थापना के पीछे एक ही उद्देश्य रहा और वह है पूरे मोरिश देश में हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार। इसी उद्देश्यकी पूर्ति के लिए सभा के प्रमुख दाता श्री रामदास रामलखन जो गिरिधारी भगत से जाने जाते थे, हिन्दी के प्रचार के लिए अपनी सारी सम्पति दान में दे दी। इन से प्रेरणा पाकर और कई हिन्दी  प्रेमियों ने अपनी ज़मीनें तथा पैसे दान में दे दिए। इस तरह हिन्दी प्रचारिणी सभा की स्थापना हुई और मोरिशस में हिन्दी का प्रचार शुरू हुआ। सभा के संस्थापक पं. बोलाराम मुक्ताराम चटर्जी सभा के प्रथम प्रधान बने।